संत शिरोमणी बाबा गुरु घासीदास केवल सत्य के पथगामी ही नहीं उसके अन्वेषक भी थेडॉक्टर संतोष कुमार मिरी

संत शिरोमणी बाबा गुरु घासीदास केवल सत्य के पथगामी ही नहीं उसके अन्वेषक भी थे
डॉक्टर संतोष कुमार मिरी
छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी धाम के माटी में जन्मे महान संत गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसंबर 1756 में पिता
महंगु दास और माता अमरौतिन के घर में हुआ। वे बचपन से ही छुआछूत और असमानता जैसी कुरीतियों को देखा जो उनके जीवन का प्रमुख उद्देश्य बना।
गिरौदपुरी के सोनाखान सघन जंगल में अवस्थित छाता पहाड़ में 6 माह की कठोर तपस्या पश्चात औरा धावड़ा वृक्ष के नीचे ज्ञान को उपलब्ध हुए। ज्ञान प्राप्ति पश्चात बाबा जी के मुख से सतनाम सतनाम शब्द स्वस्फूर्त मुखरित हुए ।वे 7 सिद्धांत ,40 वाणी का आविर्भाव किए।
वे केवल सत्य के राह पर चलने वाले पथगामी ही नहीं थे ,बल्कि एक महान सत्य के खोजकर्ता थे और इस अन्वेषण से ज्ञान की प्राप्ति हुई।इस ज्ञान से उदात्त परंपरा और उजास धारा की शालीन अभिव्यक्ति धर्म स्वरूप सतनाम पंथ की उत्पत्ति हुई।इसके अनुयायी सतनामी कहलाए ।सतनाम पंथ के सम्मान में पंथी नृत्य,चौका आरती का गायन गुरु घासीदास बाबा जी के संदेशों को याद करके किया जाता है ।इस धर्म स्वरूप सतनाम पंथ में गुरु घासीदास बाबा जी ने7 सिद्धांत , 40 गुरु के वाणी बताए। जनमानस को रावटी लगाकर संदेश दिए।
सतनाम धर्म के सात सिद्धांत
- सतनाम(सत्य मार्ग)पर विश्वास करो।
2.जीव हत्या मत करो।
3.मांस मदिरा का सेवन मत करो।
4.चोरी जुआ से दूर रहो।
5.नशा पान मत करो।
6.जाति पाति के प्रपंच में मत पड़ो।
7.व्यभिचार से दूर रहो।
सतनाम पंथ में सप्त सिद्धांत के जानने,मानने,पहचानने और निर्वाह करने वाले व्यक्ति स्वमेव सतनामी हो गए।
सतनाम ग्रंथ को पोथी के नाम से जानते हैं।
गुरु के वाणी को गौर करें तो उनके छत्तीसगढ़ी भाषा में जो मिठास है वह अद्वितीय है ।अति गुरतुर भाखा है।जो कि आज भी प्रासंगिक है।
गुरु के वाणी 1. सत ह मनखे के गहना आय।
2.मनखे मनखे एक बरोबर
3.सतनाम को जानव,मानव,समझव
4.सतनाम ह घट घट म समाय हे।
5.पहुना ल साहेब समान जानव
6 नियाव हर सबो बर बरोबर होथे
7 दिन दुखी के सेवा सबले बड़े धर्म आय
8 अपन घट (हृदय) के देवा ल मनाहाव
9.पानी पीहू छान के अउ गुरु बनाहु जान के।
10 ज्ञान पंथ कृपाण के धारा।
11 बैला भैंसा ल सूरज चढ़े के बाद नागर म झन फांदहु।
12 पशुबली अंधविश्वास आय एला कभी झन करहु।
ये गुरु घासीदास बाबा जी के प्रमुख वाणी हैं।आज उनके सिद्धांत और वाणी में जो मूलमंत्र है जीवनलब्धी और जीवनदायिनी है।जो कि आज भी मानव इस राह पर चलकर अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं।तनाव, दबाव से मुक्त स्वतंत्र जीवन की ओर उन्मुख हो सकते है।सत्य के पथ पर चल सकते है।आध्यात्मिक जगत में विचरण कर सकते हैं।
गुरु घासीदास बाबा जी के जयंती 18 दिसंबर को पूरे देश में सतनाम धर्म के अनुयायियों द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ माह भर जयंती मनाया जाता है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि परमपूज्य गुरु घासीदास बाबा जी के जीवनी और सात सिद्धांतों को स्कूली शिक्षा से जोड़ा जाए ताकि देश के भावी पीढ़ियों तक उनकी विचारधारा युगों युगों तक आलोकित होती रहे
(लेखक विचारक्रांति प्रोत्साहन परिषद में राष्ट्रीय सलाहकार हैं और वे चेतना विकास मूल्य शिक्षा पर काम कर रहे है।)