द्विविवाह बना डॉक्टर की तबाही की वजह छत्तीसगढ़ शासन का बड़ा एक्शन

अमोड़ा CHC के डॉ. मिथलेश साहू तत्काल निलंबित
रायपुर। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग के एक चिकित्सक की निजी जिंदगी का गैरकानूनी निर्णय अब उनके सरकारी करियर पर भारी पड़ गया है। डॉ. मिथलेश साहू, जो महासमुंद जिले के अमोड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में बतौर चिकित्सा अधिकारी पदस्थ थे, द्विविवाह के गंभीर आरोप में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिए गए हैं।राज्य शासन द्वारा 17 जुलाई 2025 को मंत्रालय, नवा रायपुर से जारी आदेश ने पूरे स्वास्थ्य महकमे में खलबली मचा दी है।**दूसरी शादी की पोल खुलते ही तूफान : मंत्रालय द्वारा जारी दस्तावेजों के अनुसार, डॉ. मिथलेश साहू ने 26 मई 2023 को महासमुंद की डिगेश्वरी साहू से विधिवत विवाह किया था। लेकिन हैरानी की बात तब सामने आई जब यह खुलासा हुआ कि उन्होंने बिना तलाक लिए, 8 जनवरी 2024 को धमतरी निवासी सृष्टि साहू से दूसरी शादी कर ली।यह सीधे तौर पर छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के नियम 22 का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसके अंतर्गत किसी भी सरकारी सेवक को पहली पत्नी के जीवित रहते द्विविवाह की अनुमति नहीं है।अनुशासनहीनता पर सख्त कार्रवाई: शासन ने नियमों के तहत निलंबन ठोका -शासन ने इस अनुशासनहीन और गैरकानूनी आचरण की पुष्टि के बाद, छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के नियम 9(1)(क) के अंतर्गत डॉ. साहू को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।निलंबन के बाद डॉ. साहू को संभागीय संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं, रायपुर के अधीन मुख्यालय में अटैच किया गया है। अब वे उक्त सक्षम अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना रायपुर मुख्यालय छोड़ नहीं सकते। डॉक्टर साहब की ‘प्रेम कहानी’ या धोखा? – सूत्रों की मानें तो डॉ. साहू की दूसरी पत्नी सृष्टि साहू को उनकी पहली शादी की जानकारी नहीं थी। मामला तब और उछला जब कांकेर जिले के तत्कालीन सीएमएचओ को डॉ. साहू की पहली पत्नी व परिजनों द्वारा लिखित शिकायत दी गई और पूरा घटनाक्रम कांकेर और महासमुंद की स्थानीय मीडिया में प्रमुखता से उजागर हुआ।सोशल मीडिया पर #DoctorBigamy ट्रेंड करने लगा और आम जनता से लेकर डॉक्टर साहू के सहकर्मियों तक ने इस मामले को लेकर स्तब्धता जताई — “सरकारी नौकरी करते हुए दो-दो पत्नियाँ, आखिर कैसे?” फौजदारी मुकदमे की भी जमीन तैयार : इस मामले में यदि पहली पत्नी की ओर से पुलिस में आपराधिक शिकायत दर्ज कराई जाती है – जैसा कि सूत्रों ने बताया है कि IPC की धारा 494 (द्विविवाह) के तहत मामला पहले ही दर्ज हो चुका है – तो डॉ. साहू को सात साल तक की सजा हो सकती है।महिला संगठनों ने राज्य महिला आयोग से मामले का स्वतः संज्ञान लेने की मांग की है, वहीं कुछ मानवाधिकार संगठनों का तर्क है कि इसे व्यक्तिगत जीवन का मामला मानते हुए गोपनीय तरीके से हल किया जाना चाहिए।*सवालों के घेरे में चरित्र सत्यापन और सेवा निगरानी तंत्र : यह घटना केवल एक डॉक्टर के निलंबन तक सीमित नहीं है। यह एक व्यवस्थागत सवाल भी खड़ा करती है- क्या सेवाभर्ती से पहले चरित्र सत्यापन और पृष्ठभूमि जांच पर्याप्त होती है? सेवा में रहते हुए क्या अधिकारियों के आचरण पर प्रभावी निगरानी रखी जाती है? क्या केवल आपराधिक गतिविधियों पर नजर है या नैतिक आचरण पर भी?स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए यह मामला अब एकमात्र अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं, बल्कि भविष्य की सेवा नीति में सुधार का संकेत बन सकता है।निजी आचरण भी सरकारी सेवा का मापदंड: शासन का स्पष्ट संदेश -राज्य शासन ने इस निर्णय के ज़रिए यह स्पष्ट संदेश दिया है।*“सरकारी सेवा में आचरण केवल कार्यालय तक सीमित नहीं है। नैतिक पतन भी सेवा दोष की श्रेणी में आता है।”*डॉ. साहू की कहानी अब एक प्रेम प्रसंग या निजी मामला नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक मिसाल बन चुकी है। यह एक चेतावनी है उन सभी सरकारी कर्मियों के लिए जो निजी निर्णयों को सेवा शर्तों से ऊपर मानते हैं। प्रेम , झूठ और सेवा शपथ की त्रासदी :डॉ. साहू का यह मामला अब केवल व्यक्तिगत रिश्तों का नहीं रहा – यह एक ऐसा ज्वलंत उदाहरण है जो यह दर्शाता है कि सरकारी सेवा में नैतिकता और क़ानून की अनदेखी कितनी महंगी पड़ सकती है। स्वास्थ्य विभाग के गलियारों में अब यही सवाल तैर रहा है -“क्या डिग्रीधारी होना ही काफी है, या सेवा भावना के साथ आचरण भी उतना ही जरूरी?”