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डॉ.रुपेन्द्र कवि बस्तर

“खून की मिट्टी में फूल”

बस्तर के घाव अभी सूखे नहीं थे,कि पहलगाम की धरती भी लहू से भीग गई।न जाने क्यों ये भूमि हर बारमातम की चादर ओढ़ लेती है,और हम, जो कविता लिखते हैं,एक और अंतिम गीत रचने को मजबूर हो जाते हैं।

मैं तो सोचता था

कि बस हमारे जंगलों में हीगूंजती है गोलियों की ताल,पर अब तो हर वादी, हर नदीवीरों की शव-वहन बन गई।

क्या लिखूं?

कविता? या विलाप?या एक संकल्प?जो बस्तर की ज़मीन परऔर अब पहलगाम की हवाओं में भी

गूंजे:

“बस करो!”

तुम ले सकते हो शरीर,

पर नहीं छीन सकते स्वाभिमान,ये मिट्टी वीरों को जन्म देती है—हर आँसू में एक बीज बो दिया गया है,जो कल एक क्रांति बनकर उगेगा।

जिनके लहू से ये धरती लाल है,वो मृत नहीं,वो अब कविता के रूप में अमर हैं।@डॉ रूपेन्द्र कवि बस्तर(छत्तीसगढ़)

Ramgopal Bhargav

मेरा नाम रामगोपाल भार्गव है, मैं (नवा बिहान न्यूज़) पोर्टल का संपादक हूँ। Navabihannews.com एक हिन्दी न्यूज़ पॉर्टल है इस पोर्टल छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश दुनियाँ की खबरों को प्रकाशित किया जाता है।

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