“ डॉ. रुपेन्द्र कवि -बस्तर की माटी से जुड़ा एक बहुमुखी व्यक्तित्व.”

“शैक्षिक यात्रा और मानवशास्त्रीय दृष्टि”
डॉ. रुपेन्द्र कवि का नाम बस्तर के उन चुनिंदा व्यक्तित्वों में सम्मिलित है, जिन्होंने अपने जीवन को ज्ञानार्जन, साहित्य सृजन और जनसेवा के त्रिवेणी संगम में सराबोर करते हुए महत्वपूर्णता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। एक मानवविज्ञानी के रूप में वे बस्तर के समृद्ध आदिवासी संस्कृति के गहन अध्येता हैं ही, वहीं एक साहित्यकार, कवि और लेखक की छवि में उनकी रचनाएँ मानवीय संवेदनाओं और क्षेत्रीय सरोकारों को स्पर्श करती है। इन सब बातों से ऊपर, वे एक कर्मठ निष्ठावान, मृदुभाषी और उदार चरित्र के व्यक्ति हैं, जिनका जीवन परोपकार और सामुदायिक उत्थान के प्रति सम्पूर्णतः समर्पित है।
शैक्षणिक यात्रा और मानवशास्त्रीय दृष्टि :
बस्तर की जनजातीय संस्कृति में पले-बढ़े डॉ. कवि ने अपनी शैक्षणिक यात्रा को इसी मिट्टी की जड़ों से जोड़ा। उन्होंने मानवविज्ञान में गहन अध्ययन किया और आज वे छत्तीसगढ़ के जनजातीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में उप-निदेशक/अनुसंधान अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। उनका शोध कार्य बस्तर के आदिवासी समुदायों – जैसे गोंड, धुर्रवा, परजा, भतरा, मुरिया, मड़िया, बिरहोर,बैगा – की परंपराओं, रीति-रिवाजों, सामाजिक संरचनाओं और उनके समक्ष आ रही चुनौतियों पर केंद्रित है। उनके मोनोग्राफ और अध्ययन, जिनमें ‘बस्तर दशहरा’, ‘भंगाराम जात्रा, मावली मंडई,आदिवासी विवाह संस्कार’,जैसे विषय शामिल हैं, इस क्षेत्र की मानवशास्त्रीय समझ को गहराई तक अध्ययन करते हैं। “बस्तर में आदिवासी विकास “ उनकी मानीखेज पुस्तक है और हाँ वे केवल अध्ययन ही नहीं करते, बल्कि इन समुदायों की पहचान और गरिमा को बनाए रखने के लिए अपनी अंतर्दृष्टि साझा करते हैं।
साहित्यकार, कवि और लेखक के रूप में :
डॉ. कवि की प्रतिभा केवल अकादमिक शोध तक सीमित नहीं है। वे एक संवेदनशील साहित्यकार भी हैं, जिनकी कलम से कविताएँ, कहानियाँ और लेख फूटते हैं। उनकी रचनाएँ अक्सर बस्तर के जीवन, प्रकृति और उसके लोगों के सुख-दुःख को दर्शाती हैं। उनकी कविताओं में जहाँ मिट्टी की सोंधी खुशबू और लोकजीवन का उल्लास है, वहीं उनके गद्य में सामाजिक मुद्दों और मानवीय संबंधों की बारीक पड़ताल मिलती है। एक लेखक के रूप में, वे अपनी गहरी समझ और सहज अभिव्यक्ति के साथ पाठकों को बस्तर के हृदय तक ले जाते हैं।”बस्तर की सुबह “ उनकी बस्तर के मर्म -लोकजीवन को समर्पित द्विभाषीय (हिंदी-हल्बी ) बहुचर्चित कविता संग्रह है ।
परोपकारी भावना और सामुदायिक जुड़ाव:
डॉ. रुपेन्द्र कवि का व्यक्तित्व केवल उनकी उपाधियों या कृतियों से परिभाषित नहीं होता, बल्कि उनके उदार प्रवित्ति और कर्तव्यनिष्ठा से ओत-प्रोत स्वभाव से भी झलकता है। वे केवल शोधकर्ता नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़े एक ऐसे व्यक्ति हैं जो आदिवासी समुदायों के बीच रहते हैं, उनकी समस्याओं को समझते हैं और अपनी ओर से हर संभव सहायता प्रदान करते हैं। उनके परोपकारी कार्य, चाहे वे शिक्षा के क्षेत्र में हों, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने में, या स्थानीय कला एवं शिल्प को बढ़ावा देने में, उनकी मानवीय संवेदनाओं का प्रमाण हैं। वे स्वयं को बस्तर के लोगों के सुख-दुःख का भागी मानते हैं।
मानवता के उच्च शिखर में वही चढ़ेंगे,
जिनको चढ़ना आता है।
परिस्थिति विपरीत भले हो वही बढ़ेंगे,
जिनको बढ़ना आता है।
इस दुनिया में जाने कितने मानव नित ही,
संघर्षों में प्राण लगाते।
किन्तु अलौकिक कीर्तिमान तो वही गढ़ेंगें,
जिनको गढ़ना आता है।।
एक प्रेरणादायक रोल मॉडल :
अपनी शासकीय जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए भी डॉ. रुपेन्द्र कवि जी ने ज्ञान, साहित्य और सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। वे बस्तर के युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा हैं कि कैसे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए भी उच्च शिक्षा प्राप्त की जा सकती है और समाज के लिए सार्थक कार्य किए जा सकते हैं। उनका जीवन और कार्य बस्तर की आत्मा को समझने, उसे संरक्षित करने और उसके विकास में योगदान देने का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है। डॉ. कवि वास्तव में बस्तर की माटी के एक ऐसे सपूत हैं, जिनकी बहुमुखी प्रतिभा और निस्वार्थ सेवा उन्हें एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व बनाती है।
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उमेश कुमार श्रीवास
कवि, लेखक एवं साहित्यकार
खैरा जयरामनगर