
— डॉ. रूपेन्द्र कवि, मानवविज्ञानी, साहित्यकार एवं परोपकारी विचारक
रायपुर। आज जब हम भारत रत्न, मिसाइल मैन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की जयंती मना रहे हैं, तो यह केवल एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक ऐसे युगपुरुष को स्मरण करने का अवसर है, जिनकी साधना, सादगी और संकल्प ने न जाने कितने युवाओं के जीवन को आकार दिया। मैं स्वयं उन लाखों में एक हूँ जिनका जीवन, सोच और संघर्ष उनकी लिखी “अग्नि की उड़ान” से रूपांतरित हुआ।
मुझे आज भी अपने पिता के शब्द याद आते हैं, जब मैं पीएच.डी. कर रहा था और संघर्षों से घिरा हुआ था। वे अक्सर मुस्कराते हुए कहते,
“अब्दुल कलाम बनना है क्या?”
यह उनका अंदाज़ था यह कहने का कि हार नहीं माननी है, आगे बढ़ना है, जैसे कलाम जी बढ़े।
जब पारिवारिक दबाव में विवाह की बातें होतीं, और मैं अपनी पढ़ाई, शोध और सेवा के मार्ग पर अडिग रहता, तो पिता की वही आवाज मेरे भीतर गूंजती — “कलाम बनना है क्या?”
यह सवाल नहीं, मेरे जीवन का मूल संकल्प बन गया।
“अग्नि की उड़ान” को पहली बार पढ़ते ही जैसे मेरी आत्मा में कुछ स्थायी रूप से अंकित हो गया। उसमें एक जगह वे लिखते हैं:
“महान स्वप्नदृष्टाओं के महान स्वप्न, समय की सीमाओं को पार कर जाते हैं।”
यही पंक्ति मेरी चेतना में बैठ गई। तभी तय कर लिया कि चाहे रास्ता कठिन हो, पर मुझे अपने स्वप्न को पीछे नहीं छोड़ना है।
कलाम जी ने अपने जीवन में दिखाया कि एक मछुआरे का बेटा भी, अगर ध्येय अडिग हो और मेहनत ईमानदार, तो वह राष्ट्र का सर्वोच्च नागरिक बन सकता है। यही संदेश मेरे लिए दीप की लौ बन गया, विशेषकर तब, जब समाज या व्यवस्था से निराशा होती।
“अग्नि की उड़ान” का वह प्रसंग आज भी मुझे भावुक कर देता है, जब वे लिखते हैं कि कैसे उन्हें पढ़ाई के लिए समाचार पत्र बांटने पड़ते थे, और कैसे उनके शिक्षक ने उन्हें आत्म-विश्वास का पहला पाठ पढ़ाया था।”शिक्षक किसी भी देश की रीढ़ होते हैं, वह स्तंभ जिन पर सभी आकांक्षाएं हकीकत में बदलती हैं।”
यह कथन मेरे लिए उस समय बहुत महत्वपूर्ण हो गया जब मैं अपने शैक्षणिक जीवन में उतार-चढ़ाव से गुजर रहा था।
उनकी जीवन यात्रा ने यह सिखाया कि “नेवर गिव अप “कोई आदर्श वाक्य मात्र नहीं, बल्कि जीने की शैली है। जब-जब असफलता सामने खड़ी हुई, मैंने अग्नि की उड़ान से यह सीखा कि “हर असफलता एक सीढ़ी बन सकती है, यदि सपना ज़िंदा रहे”
डॉ. कलाम के लिए विज्ञान, सेवा और साधना — तीनों एक ही रेखा में चलते थे। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची राष्ट्र-सेवा केवल विज्ञान या राजनीति से नहीं, बल्कि करुणा, शिक्षा और चरित्र निर्माण से होती है।
आज जब उनके सिद्धांतों को स्मरण करता हूँ, तो यह कहने में गर्व होता है कि मेरे जीवन में वे केवल एक प्रेरक नहीं, एक पथदर्शक हैं, जिनकी छाया हर निर्णय में, हर संघर्ष में, और हर उपलब्धि में बनी रहती है।
उनकी जयंती पर यह लेख केवल मेरी ओर से श्रद्धांजलि नहीं है, यह मेरा संकल्प-पत्र भी है —
कि जीवन में चाहे जितनी बाधाएँ आएं, हार नहीं माननी है। सपनों को उड़ान देनी है। और जब भी दिशा भटके, तो “अग्नि की उड़ान” खोलकर फिर से खुद को पहचानना है।
आपकी अग्नि की उड़ान ने मेरी आत्मा को भी उड़ान दी, प्रणाम आपको, महात्मा।
— डॉ. रूपेन्द्र कवि
मानवविज्ञानी, साहित्यकार एवं परोपकारी विचारक
(वर्तमान में: उप सचिव, राज्यपाल, छत्तीसगढ़)